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योगासन – शरीर का अतिक्रमण’

 योगासन –” शरीर का अतिक्रमण “

स्थिरसुखमासनम् ॥ 46 ॥
स्थिर और सुखपूर्वक बैठना आसन है।

पतंजलि के योग को बहुत गलत समझा गया है, उसकी बहुत गलत व्याख्या हुई है। पतंजलि कोई व्यायाम नहीं सिखा रहे हैं, लेकिन योग ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वह शरीर का व्यायाम मात्र हो। पतंजलि शरीर के शत्रु नहीं हैं। वे तुम्हें शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नहीं सिखा रहे हैं, वे तुम्हें शरीर का सौंदर्य सिखा रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि एक सुंदर शरीर में ही एक सुंदर मन हो सकता है, और सुंदर मन में ही सुंदर आत्मा संभव है और सुंदर आत्मा में ही परमात्मा उतर सकता है। एक-एक कदम सौंदर्य में गहरे उतरना होता है। शरीर के सौंदर्य, शरीर के प्रसाद को ही वे आसन कहते हैं। वे तुम्हें शरीर को सताना नहीं सिखा रहे हैं। वे जानते हैं शरीर आधार है। वे जानते हैं यदि तुम शरीर को चूक जाते हो, यदि तुम शरीर को प्रशिक्षित नहीं करते तो और ऊँचा प्रशिक्षण संभव न होगा।

आसन को स्थिर और सुखद होना चाहिए। कभी अपने शरीर को सताने की कोशिश मत करना, कभी उन आसनों के लिए कोशिश मत करना जो बैठने के लिए सुखद नहीं हैं। पतंजलि कोई भी आसन तुम पर ज़बरदस्ती थोपना नहीं चाहते हैं। यदि कोई व्यक्ति ज़मीन पर नहीं बैठ सकता तो कुर्सी पर बैठा जा सकता है। जिनको सुविधाएं हैं वे पद्मासन में, सुखासन में या अन्य किसी भी आसन में बैठ सकते हैं। आसन के विषय में अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम पतंजलि की व्याख्या पर ध्यान दो कि आसन क्या है, तो तुम समझ जाओगे कि उसे स्थिर और आरामदेय होना चाहिए।

आसन ऐसा होना चाहिए कि तुम अपने शरीर को भूल सको

आरामदेह होने का अर्थ क्या है?
जब तुम शरीर को भूल जाते हो, तब तुम आराम में होते हो। जब तुम्हें बार-बार याद आती है शरीर की, तब तुम आराम में नहीं होते। आराम में रहो, क्योंकि यदि तुम शारीरिक रूप से आराम में नहीं हो तो तुम दूसरी महत्वपूर्ण ध्यान की गहरी परतों में नहीं उतर सकते हो। यदि पहली परत चूक जाती है तो दूसरी सब परतें बंद रहती हैं।

यदि तुम सच में ही प्रसन्न और आनन्दित होना चाहते हो तो एक-दम प्रथम में ही आनन्दित होना प्रारम्भ करना। जो व्यक्ति भीतर के आनन्द की तलाश में हैं, उनके लिए शरीर का आराम मूलभूत आवश्यकता है। और जब भी आसन सुखद होता है, तो वह स्थिर होगा ही। यदि आसन आरामदेह न होता तो तुम हिलते-डुलते रहते हो। और ध्यान रहे, जो आसन तुम्हारे लिए आरामदेह है, हो सकता है कि वह किसी अन्य व्यक्ति  के लिए आरामदेह न हो, तो कृपया अपना आसन किसी अन्य को मत सिखलाने लगना। प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है। जो चीज़ तुम्हारे लिए सुखद हो सकती है, शायद वह दूसरे के लिए सुखद न हो। तुम्हारे अंगूठे का निशान विश्वभर में किसी दूसरे से नहीं मिलता, तो तुम्हारा शरीर किसी दूसरे से कैसे मिल सकता है?

इसलिए कभी किसी दूसरे की बात मत सुनना, तुम्हें अपना आसन स्वयं ढूंढ़ लेना है। इसे सीखने के लिए किसी शिक्षक के पास जाने की आवश्यकता नहीं, सुख की तुम्हारी अनुभूति ही शिक्षक है। और यदि तुम प्रयोग करो – तो कुछ दिन सभी आसनों का प्रयोग करके देखना जिनकी तुम्हें जानकारी हो, सभी तरह से बैठ करके देख लेना; एक दिन तुम अपना आसन ढूंढ़ लोगे। जिस दिन तुम्हें अपना आसन मिल जाएगा, तुम्हारे भीतर की प्रत्येक चीज़ शांत और मौन हो जाएगी। क्योंकि कोई तुम्हें नहीं बता सकता क्योंकि कोई नहीं जान सकता तुम्हारे शरीर की समस्वरता  को कि वह किस आसन में एकदम स्थिर और सुखदायक होगा।

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