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योगासन – शरीर का अतिक्रमण’

 योगासन –” शरीर का अतिक्रमण “ स्थिरसुखमासनम् ॥ 46 ॥स्थिर और सुखपूर्वक बैठना आसन है। पतंजलि के योग को बहुत गलत समझा गया है, उसकी बहुत गलत व्याख्या हुई है। पतंजलि कोई व्यायाम नहीं सिखा रहे हैं, लेकिन योग ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वह शरीर का व्यायाम मात्र हो। पतंजलि शरीर के शत्रु नहीं

धारा की श्रृंखला

मानवी शरीर असंख्य स्रोतसों से बना हुआ है यह एक ज्ञात बात है। यह स्रोतस् शरीर पदार्थों को एक भाग से दुसरे भाग में वहन करनेवाली मात्र नालियाँ नहीं है। यह वो मार्ग है जिनमें से गुजरते हुए शरीर घटकों में बदलाव होते जाते हैं। यह वो अयन है जो परिणाम आपद्यमान धातुओं का वहन

प्राचीन आचार्यों का विज्ञान और वर्तमान यथार्थ

हमारे आचार्यों के अद्वितीय सूत्र हमारे प्राचीन आचार्यों ने जिन विषयों पर गहन शोध और अन्वेषण करके जो सूत्र रूप में लिखा है, वह अक्षरशः सत्य माना जाता है। उनके ज्ञान को आज के यथार्थवादी वैज्ञानिक, जो निरंतर परिश्रम कर रहे हैं, अभी तक पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सके हैं। सत्यप्रिय वैज्ञानिकों ने

पंचकर्म

वर्तमान समय एक व्यस्तथ आधुनिक मशीनी युग बन गया है। जिसके कारण लोगों की जीवनचर्या में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं जिसमें आहार सम्बन्धी जैसे फास्ट फूड, डिब्बा बंद भोजन, उच्च कैलोरी युक्त भोजन, अतिशीत भोजन ग्रहण तथा शारीरिक श्रम एकदम अल्प हो गया है। अर्थात् वर्त्तमान युग में शारीरिक श्रम कम तथा मानसिक श्रम अधिक

Basic Ayurveda

आयुर्वेद के मूल द्रव्य (त्रिदोष )Basic Ayurveda महर्षि कपिलदेवजी ने सृष्टिनिर्माण को पुरुष और प्रकृति के संगम का परिणाम माना है। उनके मतानुसार, पुरुष निर्लेप, निर्गुण और अपरिणामी है, जबकि प्रकृति जड़ और परिणामी है, जो क्षण-क्षण में नया रूप धारण करती है। ये प्रकृति और पुरुष दोनों ही अचिन्त्य, अनादि और अनन्त हैं। प्रकृति